Thursday, December 31, 2009

जब तुमको अपनी आँख खोलनी होगी



एक और वर्ष दहलीज़ पर,
आगमन को खड़ा है.
वतन फिर पश्चिम के रंग में,
अब सजने लगा है.
महफ़िलों के किस्से,
कल अखबारों में छाएंगे.
पर कुछ लोग,
ये रात और रातों से बिताएँगे.
उम्मीद का नया दिया,
यूँ तो मैंने जला लिया.
पर मैंने अपना ये दिल,
आज जाने फिर क्यों दुखा लिया.
एक सच्चाई के तूफान ने,
इसको आज फिर हिला दिया.
एक मजाक उड़ा,
जो कभी यहाँ कोई स्वाभिमानी बना.
हर किसी ने,
झूठ और बेईमानी को जाने पहले क्यों चुना.
मैंने आज तक,
किसी के मुहँ से कभी नहीं सुना,
जाने कितने वर्षों से,
यहाँ सत्य का सूरज नहीं उगा.
उपलब्धियाँ बहुत हैं,
गिनू तो मैं शायद थक जाऊं.
बहुत पक्षपात और बेईमानी के किस्से हैं,
तुम बताओ कैसे सुनाऊं?
जानते हो तुम अर्थव्यस्था शिखर छू रही,
तो और क्या बताऊँ.
क्यों गरीबों का चर्चा कर,
मै तुमको रुलाऊं.
जश्न का दिन है,
तो खुशहाली की बात करनी होगी.
हर सच को पीछे कर,
झूठी गाथा गढ़नी होगी.
पर जो रोएगी आज,
वो हमारी ये जन्मभूमि होगी.
कोई तो दिन आएगा वो,
जब तुमको अपनी आँख खोलनी होगी.

Monday, December 28, 2009

आज स्वाभिमान को जैसे जंग लगा


आज स्वाभिमान को जैसे जंग लगा,
ईमानदार अभिलाषा पर व्यंग बना.
मिट्टी में बेईमानी का काला रंग मिला,
नौनिहाल का चेहरा नफरतों के संग खिला.

सत्य की राह का कोना तंग और तंग हुआ,
आमजन का देशप्रेम से आज मोहभंग हुआ.
सत्ता की ताकत का लाचारों पर दंभ दिखा,
जिधर दृष्टि फेरों शिकवों का लाल रंग दिखा.

आलिशान भवनों में महफिलों का सेज सजा,
किसी की रातों को खुले आसमान का दहेज़ मिला.
उसके मुखपटल पर क्या कभी तेज खिला,
बचपन से जिसे दर-दर की ठोकरों का देश मिला.

इस बेहाल वतन की महानता का गीत सुना,
कई वीरों की वीरता का यशस्वी संगीत सुना.
वतन की चाह में उनका हर पल था व्यतीत हुआ,
बलिदान उनकी प्रेमिका, शहादत उनका मीत हुआ.

एक-एक पग से आज याद उनका जूनून हुआ,
हम सब में कही ना कही उनका अंश यकीन हुआ.
मेरे अंतरमन को अनजाना सा सुकून मिला,
पर समझ ना आया कहा से बेईमानी का ये खून मिला.

Monday, November 30, 2009

पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है


उस रिक्शे वाले की रगे किसी दर्द से दुखती हैं,
कहता है उसकी तो आँख आँसुओ से सजती हैं.
बोलता मेरे घर में नहीं कभी दिवाली मनती है,
तो फिर क्यों यहाँ खुशहाली की खबरे छपती हैं?

किसी की आत्मा खुद की लाचारी में जलती है,
किसी की राते भूखे और खाली पेट ढलती हैं.
किसी नन्हे हाथ में मुझे एक कटोरी दिखती है,
कही रात भर पैसे वालो की महफ़िल सजती है.

यहाँ हर एक दिल में एक चिंगारी सुलगती है,
पर क्यों नहीं कही से कोई आवाज़ निकलती है?
सच्चाई सबको पता असलियत साफ़ झलकती है,
यहाँ हर राह पर अन्याय की तस्वीर चमकती है.

राज़नेताओ की यहाँ हर रोज़ जबान बदलती है,
उनकी चाह तो बस सत्ता के लिए मचलती है.
उनकी तो आये दिन यहाँ किस्मत सवरती है,
पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है.

Wednesday, November 18, 2009

कैसी ये नाइंसाफी है..



जीवन वृक्ष की डाल पवन झोकों से प्रतिरक्षा कर रही,
दहेली पर आगमन को तैयार हर पल की सुरक्षा को लड़ रही.
उम्मीदों की कड़ी कांच के टुकडों की भांति जमी पर बिखर गयी,
मनुष्य के राह की मंजिल बस धन के पड़ाव पर आकर ठहर गयी.


चंद कागज के टुकडों की लालसा ने नैतिकता को घुन लगा दिया,
हर किसी को भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल करा लिया.
मानवता को आज लोगों ने फरेब के चुल्लू भर पानी में डुबो दिया,
शरीर के एक-एक कतरे को बेईमानी के कालिख जल से भिगो दिया.


योग्यता कर्म-स्थल पर कसौटी का द्वितीयक पैमाना बना,
हर कोई गरीब इस नाइंसाफी का आसान निशाना बना.
मजदूर आदमी ने अपने खून पसीने से नव भारत का सृजन किया,
वातानुकूलित कक्ष में बैठे किसी अधिकारी ने श्रेय लिया, खुद की महिमा का वर्णन किया.


बुराई का दानव सत्ता के गलियारों की शान बना, हर ओर झूठ का आवरण छा गया,
देश झूठे सपनों व बयानों से आभासी रोशनी में जगमगा गया.
सड़कों में सोने वाले वही पैदा हुए और वही बेचारे भूख से एक दिन मर गए,
अजीब सी बात है सत्ता के लोग ये सब भूल, एक रात बिताने किसी दलित के घर गए.

Monday, November 9, 2009

हर कोई बेईमान दिखता है..



हर कोई मुझे बेईमान लगता है, हर कोई मुझे परेशान दिखता है,
हर कोई बेच रहा अपना इमान, नज़ारा ये खुले आम दिखता है.
किसी भी मोड़ पर जाऊ कही, तो हर शख्स हैरान दिखता है,
बदल गयी शायद इंसानियत, हर किसी के दिल मै एक शैतान दिखता है.

राख भी नहीं मिलती एक कत्लेआम लगता है, ईमानदारी का हो गया काम तमाम लगता है,
दूर-दूर तक सत्य का निशान नहीं, इसकी भूमि का मर गया किसान लगता है.
अहिंसा की बाते किताबों की पंक्तिया बनी, इसके विचारों का संग्रहालय सुनसान लगता है,
प्रेम भाईचारे के राह पर काँटो की झाड़िया उगी, अ़ब कुछ ही दिनों का ये मेहमान लगता है.

झूठे और दगाबाज़ पहुंचे है शासन पर, सच्चे इन्सान को जो एक सपना बेईमान लगता है,
आम जानता में है एकता की कमी, इनका हाल मुझे लहूलुहान लगता है.
गरीब को ना शिक्षा ना ही अवसर, देश का ये सबसे बड़ा अभिशाप दिखता है,
पर हम बढ़ रहे निरंतर प्रगति के ओर, हमारी सरकार का ये बयान मुझे धोखेबाज़ लगता है.

हर कोई मुझे बेईमान लगता है, हर कोई मुझे परेशान दिखता है,
हर कोई बेच रहा अपना इमान, नज़ारा ये खुले आम दिखता है.
किसी भी मोड़ पर जाऊ कही, तो हर शख्स हैरान दिखता है,
बदल गयी शायद इंसानियत, हर किसी के दिल मै एक शैतान दिखता है.

Wednesday, October 14, 2009

मेरे वतन की अमिट है शान..


मेरे देश का एक-एक कण महान, मेरे वतन का अमिट है निशान,
जिसकी हर लहू बूद में वीरों की कुर्बानी, कुछ ऐसी बुलंद है इसकी शान.
कई तूफान बरसे पूरी लगा दी जान, पर नहीं मिटा कभी इसका अमर जहान,
कोशिश की जब भी करने की इसको वीरान, अनेकों वीर हुए देशभक्ति पथ पर कुर्बान.

जिसका हर जर्रा-जर्रा एक वरदान, जिसके उदगम स्थल पर पुराणों का अनमोल ज्ञान,
जिस धरा का स्थिर रहा सदा इमान, जिसके खिले-खिले फूलों पर सुंगंध दे रहे कुरान.
वीरों ने सदा दी इसको नयी पहचान, जब जरुरत पड़ी शहीद हुआ हर एक नौजवान,
जरुर पुरे होंगे इसके मंजिल फतेह के अरमान, रक्त में जिसके कई अमर देशभक्तों की जान.

अनेक महापुरुषो का हम पर है अहसान, कल्पना थी जिनकी बने ये देश महान,
जिन्होंने लुटाया अपने एक-एक पल का मान, जरुरत पड़ी तो कर दी अपनी हस्ती बलिदान.
उनकी आत्मा आज कह रही जरा दो तो ध्यान, क्या पुरे करोगे हमारे सपने जो बैठे हो तुम सुनसान?
क्या नहीं तुम्हारे लहू में हमारी पहचान, क्यों बैठे हो तुम सब ओढे चादर अज्ञान?

भूल गए शहीदों की शहादत व बलिदान, जो भूल अपनों को हुए शहीद बचायी हमारी जान,
भूल गए आजाद को? याद नहीं भगत सिंह महान? भूल गए तुम इंकलाब-जिंदाबाद की जबान.
अपने सपने दे हमें हो गए कुर्बान, सौपी अपने विचारों की विरासत, मिटा दी जिन्होंने अपनी शान,
आज उनका कतरा-कतरा मांग रहा अपने निशान, उठो तुम और कर दो हर बुराई का कत्लेआम.

Saturday, October 10, 2009

विफलता से ही सफलता..


प्रत्येक विचार को ह्रदय तराजू से तोल,
एक-एक पल का अनमोल है मोल.
मानव! मस्तिष्क के बंद कपाट तो खोल,
फिर सुख सरिता के निर्मल नीर में डोल.

मह्त्वाकान्क्षा सबकी प्राप्त हो लक्ष्य की सफलता,
जान लो प्रथम पग है इसका हतोत्साहित विफलता.
पार किया इसे मन में रही आश, पराजित की दुर्बलता,
स्पर्श करता है वही लक्ष्य के शिखर की चमत्कृत उज्जवलता.

हर पग में निराशाओ के घनघोर मेघ छाएंगे,
कदम-कदम पर काँटों से सजे पौधे घाव दे जायँगे.
तेरी हर राह पर तूफानों के कारवा महफ़िल सजायेंगे,
अनेक बाधाये अपने कठोर स्वरूप से परिचित तुझे कराएँगे.

सफल रहा वही जिसने हर रुकावट से हौसला लिया,
जिसने संघर्ष के समय खुद का आत्म साक्षात्कार किया.
ये मै नहीं कहता, इतिहास ने है सदैव सिद्ध किया,
जीता आखिर में वही, जिसने विफलता से सफलता का सृजन किया.

Friday, October 9, 2009

बेवफाई का राज़..


एक दिन रूठकर उसने कहा था मुझे,
जब झरते आंसुओ की धार में देखा था उसे.
कुछ नाराज़गी के भावों का भारी बोझ था,
उन दिनों उसके दिल में संदेहों का साया हर रोज़ था.

मिला था मुझे दिल में कई संजीदा सवाल थे,
महसूस कर रहा था मुझे बेवफा, कुछ ए़से उसके हाल थे.
मन में जाने क्यों रुखसत के ख्याल थे,
उसके जिस्म के अंग-अंग ना जाने किस पीड़ा से बेहाल थे.

मेरे करीब आ कर भी बहुत दूर था हो गया,
अपने दूर जाने की बातों से उसने था मुझे दर्द से भिगो दिया.
मेरी ना सुनी एक भी उसने कदमो को खिचता गया,
मेरे प्यार के गुलशन को, मेरे ही खून से सींचता गया.

छोड़ गया मुझे सुनसान बनाकर खंडहर,
पुकारता रहा रो-रो कर उसे मेरा उजड़ा मंजर.
रह गयी मेरे ह्रदय की जमीन बंजर की बंज़र,
ना जाने क्यों भोंका उसने मेरे बेकसूर दिल पर मौत का खंजर.

एक दिन रूठकर उसने कहा था मुझे,
जब झरते आंसुओ की धार में देखा था उसे.
कुछ नाराज़गी के भावों का भारी बोझ था,
उन दिनों उसके दिल में संदेहों का साया हर रोज़ था.

मेरा दर्द..


ह्रदय अग्नि-दहन की परकाष्ठा पर दहकता,
मन किसी अपने की चरम चाह को भटकता.
उसकी एक झलक की आरजू कब से इन आँखों में,
नजरों की ख्वाहिश वो भूला चेहरा, जैसे मेरा जिस्म मेरे कफन को तरसता.

दिल के किसी कोने में कुछ जिंदा से ख्यालात है,
मेरे चेहरे से कही न कही झलकते मेरे ज़ज्बात है.
कदम बढते जाते, वो मेरे साथ-साथ चलती अजीब इत्तेफाक है,
यादों को अपने बार-बार पुनर्जीवित कर, क्यों जाने होती वो कामयाब है.

मेरे लबों पर ना चाहकर भी एक नाम रहता है,
जो डूबे इश्क़ के सागर में शख्स वो बदनाम रहता है.
इस रोग के दर्द के मर्ज़ की तलाश करता रहता,
पर नामुंकिन है उसे भूलना, जो रूह के साथ सूबे शाम रहता.

आंसुओ के रूप में भावनाओं को बहा ले,
भला चाहता है तो खुद ही खुद को भूला ले.
कभी दर्द की अधिकता तेरे शरीर तो तोड़ दे,
तो आना मेरे मैखाने में दोस्त, जाम के दो-चार घूट लगाने.

तू ही मेरी आशा..


भोर के सूरज का ओजस्वी पवित्र प्रकाश,
शीतल पवन छूकर देती नयी जोशीली उमंग आज.
आशाओ के दीये उज्जवल लौ से जलते, खुला है आकाश,
मेरे ह्रदय में एक नयी कामना, मेरे मन में एक नयी तरंग आज.

लहू को हौसले से आवेशित करती नवप्रातः की सुगंध,
दूर होकर अपने वजूद को नेस्तनाबूद करती निराशा की धुंध.
प्रकृति के रहस्यवादी दृश्यों से आशान्वित मेरी आत्मा,
कह रही शीघ्र ही होगा निराशावादी रात्रि का खात्मा.

आशावाद की किरण आज नभ को चूम रही है,
मेरी नज़रे कायापलट होने वाले दृश्यों से झूम रही है.
अंतिम सांसे गिन रहा वो तूफान, जिसने मेरी खुशहाल किश्ती को डुबोया,
था वही तो जिसने मेरे अश्रुवो से मेरी पलकों को भिगोया.

मन के किसी कोने में विराजमान था एक रोशनी का साया,
महिमा ये उसी की है, उसने सदा मेरा अस्तित्व बचाया.
नव स्फूर्ति का आनन्द, नयी सांसे, ना ही कोई मोहमाया,
आज वास्तविक ख़ुशी का स्वादन कर रही मेरी काया.

जब कभी मेरी भावनावो के जवार ने मेरी आशओं को हिलाया,
धन्यवाद तुझे जन्नत की रूह, तुने मुझे सदैव हँसी से मिलाया.

मंजिल है नजदीक..


तेज़ धूप में चलता वो मह्त्वाकांशी शख्स,
आत्मविश्वास बह रहा बनकर उसकी नसों में रक्त.
कदमो के निशान कहते, वक्त कितना भी ढाए कहर,
ढह नहीं सकता कभी, उसके उम्मीदों का बना शहर.

जीवन के हर दुःख भरे मोड़ को हराता जा रहा,
लहू में विजय के सुख भरे अहसास को भरता जा रहा.
वो कल एक हारा हुआ निराश मानव ही तो था,
जो आज हर बाधा को तोड़ कर पार करते जा रहा.

सिखाया जिसने वो है उसकी विनाशकारी कमजोरिया,
बनी जो उसके उत्साह की ललक, थी वो उसकी ही मजबूरिया.
बढता जा रहा, कम होता फासला नजदीक है लक्ष्य,
जो कभी थी उसकी हताशा, आज वही उसकी जीत का पक्ष.

हालत चाहे हो कितने भी कठिन और विपरीत,
परिवर्तित होता है समय, यही जग की रीत.
हौसला न तोड़ कभी मानव, गाता जा द्रढ़ता के गीत,
दूर नहीं वो अनसुनी धुन, सफलता का वो मधुर संगीत.

हार मत मानना..


कभी दूर लगे तुझे सूबे का सूरज,
भयभीत करे तुझे परिस्थिति की सूरत.
आत्मविश्वास तेरा जमीन पर गिर जाये,
तेरे करीबी छोड़ तुझे कही दूर चले जाये.

मन में तेरे हताशा घर कर जाये,
ह्रदय में तेरे निराशा की बाढ़ आ जाये.
चोट पर तेरे कोई मरहम न लगाये,
तेरी सलामती को कोई हाथ न उठाये.

सलाह तुझे तू हर ना मान जाये उस वक्त,
परिवर्तित होती है स्तिथिया, चाहे कितनी हो सख्त.
आज का परिदृश्य तुझे देना चाहता है शिक्षा,
क्यों उदासी के भाव चेहरे पर, ले ले इस से दीक्षा.

मनुष्य है, मनुष्यता का प्रदर्शन कर,
तू इस तरह हारकर, शर्मनाक आत्मसमपर्ण ना कर.
तेरी है ये वास्तविक परख,
तेरे संघर्षो से ही आगे बढेगी तेरे सफलता की सड़क.

कर्म पर न्योछावर कर अपना शत प्रतिशत,
यही है इस दर्द के निदान के हकीकत.
याद रख है एक सर्वशक्तिमान शक्ति,
कार्य करे जो सच्चा कोई, तो वो शक्ति है उसकी शक्ति.

कभी दूर लगे तुझे सूबे का सूरज,
भयभीत करे तुझे परिस्थिति की सूरत.
आत्मविश्वास तेरा जमीन पर गिर जाये,
तेरे करीबी छोड़ तुझे कही दूर चले जाये.

छू लो मुझे..


आज तुम छू लो बेजान हाथों को,
कर दो जिंदा दे कर अपना स्पर्श इन्हें.
देख लो पल भर के दृष्टि से नयनों को,
एक नयी जीवन रोशनी दे दो इन्हें.

तड़पती आत्मा को कर दो स्थिर,
जला दो दिया ये है उजड़ा मंदिर.
जीवित होकर भी मृत सी है देह,
व्यतीत हुए बरसों, भूल गया मानवीय स्नेह.

बो कर बीज जैसे बिछड़ जाये माली,
किसी विनाशकारी तूफान से टूट जाये डाली.
पक्षी भटक जाये जैसे अपनी राह,
बदली छायी रात में एक चकोर की चाह.

जैसे सूरज की गर्म तपिश, लुप्त बरखा,
गाव में हो रहा मेला बिन चरखा.
जैसे राही कोई चल रहा, नीचे सुलगती रेत,
भक्ति में लीन संत की इच्छा, ईश्वर भेट.

आज तुम छू लो बेजान हाथों को,
कर दो जिंदा दे कर अपना स्पर्श इन्हें.
देख लो पल भर के दृष्टि से नयनों को,
एक नयी जीवन रोशनी दे दो इन्हें.

तेरा ही इंतजार..


कभी गुजरो अगर यादों की पुरानी कब्र से,
कुछ देर रुक जाना वह पर थोड़ा सब्र से.
बरसों से तेरे आने की उम्मीद है उसे,
अरसे से प्रेम की एक बूंद नहीं मिली जिसे.
तेरा ही रास्ता देखती है वो थकी आंखे,
आज भी याद है उसे, तेरी वो बीती बाते.
दिल में कैद है उसके वो कुछ सवाल,
जिनका बाकि है आज भी अनकहा जवाब.
माना की तू भूल गया वो जमाना,
जो कभी था तेरे जीने का एक बहाना.
भूलने से तेरे वो बदला नहीं है,
जब से गिरा वो संभला नहीं है.
लहू में दौड़ती उसकी आज भी तेरी सांसे,
दर्द से भरी रहती उसकी हर बाते.
मुश्किलों से ढ़लती उसकी है राते,
कानों में गुजती केवल तेरी ही बाते.
कभी गुजरो अगर यादों की पुरानी कब्र से,
कुछ देर रुक जाना वह पर थोड़ा सब्र से.
बरसों से तेरे आने की उम्मीद है उसे,
अरसे से प्रेम की एक बूंद नहीं मिली जिसे.

Thursday, October 8, 2009

जो बह चला,वो मेरा ही खून था

जो बह चला वों, मेरा ही खून था,
रक्त वर्ण से लतपथ मिट्टी, मेरा ही जूनून था.
कतरे-कतरे ने निभाई पूरी वफ़ा,
जो अब हो गया फ़ना, मेरा ही सुकून था.

जिसके प्रकाश से उज्वल थी ये काया,
जो था मेरे सौन्दर्य व शरीर की छाया.
जिसने मुझे मेरी नश्वर आत्मा से मिलाया,
था वही जिसने मेरी मृत्यु को बुलाया.

जलती लौ की शमा बुझ गयी है,
मेरी भावनाओ कि लकडी भी जल गयी है.
तुम मत पुकारना उस खो गए मकाम को,
उसकी हस्ती आज धुल में धूसरित हो गयी है.

जो बह चला वों, मेरा ही खून था,
रक्त वर्ण से लतपथ मिट्टी, मेरा ही जूनून था.
कतरे-कतरे ने निभाई पूरी वफ़ा,
जो अब हो गया फ़ना, मेरा ही सुकून था.

प्रकृति के आसू...

आज जो मै बहा रही हू आंसू,
कल तुम भी अवश्य रोवोगे.
मैंने दिया तुम्हे अपना सब कुछ,
कल तुम भी मेरे लिए तरसोगे.

जननी सा प्यार लुटाया मैंने तुम पर अपना हर वक़्त,
दी नदिया, दिए पहाड़ और दिए निर्मल झरने सर्वत्र.
अपने प्यार के गो़द पर खिलाया तुझे,
पर आज तुमने आखिर क्यों रुलाया मुझे?

मैंने दी तुम्हे स्वच्छ हवा, दिए तुम्हे सुंदर सपने,
पर इनको ही अपना शिकार आखिर क्यों बनाया तुमने?

मै प्रकृति हू, मै कुदरत हू,
मै जननी हू, मै जीवनदायनी हू.

मैंने दिया तुम्हे सदैव अपने श्रृंगार का दुलार,
पर वाह इंसान, तुमने कितना ज्यादा किया मुझे प्यार.

उसकी खामोशी.....

इक खामोशी सी घिर आई,

जब उसने खुद कि बेरुखी पायी.

दिल के चैन को हर पल तलाशता वो शख्स,

गुम है किसी कि जुस्तजू में आज हर वक़्त.

उसकी खामोशी का आलम देख,

आज मुझ से रहा नहीं जाता.

इंशा के साथ होता है जो,

क्या है ये, मै जान नहीं पाता.

ये शायद एक तक़दीर का फ़साना है,

जो होना है और वक़्त का अफसाना है.

खामोशी हर वक़्त किसे है पसंद,

ये वो तराना है जो न चाहकर भी गाना है.

जाम...

काम कुछ ऐसा किया जाये,
क्यों न जाम छलकाए जाये.
हो जाये गुम मदहोशी में,
चलो आज ज़रा झूमा जाये.

लिया जाये मज़ा बहकने का,
कोई ना मुझे अब बुलाये.
साकी तू अब हो जा तैयार,
मेरा जाम मुझे आवाज़ लगाये.

तू रुकना नहीं ज़रा सा भी,
पीलाने का काम करता जाये.
मुझे डूबना है इस सागर में,
पैमाने को तू अब भरता जाये.

मै हू उदासी मै डूबा आज,
तू मुझे बस पिलाता जाये.
बता देना मुझे उस वक्त,
जब मेरा होश मुझे जवाब दे जाये.

एक तन्हा शाम..

नयनों की अतृप्त प्यास बरकरार,
सूरज डूबा दूर पहाड़ के पार.
मन की विरहा कर रही पुकार,
तलाशते किसी को दृष्टि के द्वार.

दूर कही बजते धीमे से साज,
सुनते है कर्ण वो दर्द भरे राग.
पास नहीं कोई सुनने को आवाज़,
हू मुसाफिर कितना तन्हा आज.

संध्या की ये हलकी परछाई,
याद आज किसी अपने की आई.
क्या खूब कहर ढाती ये तन्हाई,
गम की बजती हर ओर सहनाई.

धीरे-धीरे शाम है ढलने लगी,
गहरी होती अनबुझी प्यास मेरी.
पलकों पर अश्रु बुँदे बहने लगी,
दुनिया है बेवफा कहने लगी.

चारो ओर अँधेरा छाने लगा,
हर पंछी अपनी पनाह में आ गया.
धीरे से दिल ने मुझे कुछ कहा,
चल सो जा अब आंसू न बहा.

यादे..

अद्भुत लेकिन एक सरस अभिव्क्ति,
निश्चल सी वो एक अमिट स्मृति.
बीते लम्हों के गवाह के निशानिया,
स्मृति पटल पर अंकित वो पुरानी कहानिया.

आँगन के पास वो बरगद का पेड़.
आज भी याद है वो मीठे बेर.
माँ का मुझे वो रूठकर डाटना,
होता जब कभी मेरा बारिश में नाचना.

तितलिया देख कल्पना सागर का मचलना.
करना नाकाम कोशिश, उन्हें पकड़ने भागना.
पक्षियों का घोसला देख उपजता रहस्य,
दादी से पूछना फिर उसका महत्व.

घर के पास का वो पुराना मकान,
जो कभी था हमारे लूका-छुपी का मैदान.
आज नहीं उसके भौतिक अस्तित्व के निशान,
पर मन में कैद है वो कुछ पल नादान.

माँ की रात को वो परियों की कहानी,
याद आज भी जों है मुह जबानी.
माँ के आँचल का मधुर सुरक्षित अहसास,
सब तो है आज, पर वो नहीं मेरे पास.

अद्भुत लेकिन एक सरस अभिव्क्ति,
निश्चल सी वो एक अमिट स्मृति.
बीते लम्हों के गवाह के निशानिया,
स्मृति पटल पर अंकित वो पुरानी कहानिया.

सोचा है?

सोचा है कभी दुनिया किसने बनायीं,
जीवन कि उम्मीद किसने जगायी.
कौन है जो देता इसे निर्देश,
आखिर मानती है ये किसका आदेश.

कब हुयी होगी इसकी शुरुवात,
कब पैदा हुयी जीवन कि आश.
कहा से आई जीवनदायनी हवा,
सोचो ये सब आखिर कब हुवा.

किसने बनायीं होगी ये कुदरत,
जो हमें दिखती है खुबसूरत.
गर्मी देती है जो ये धूप,
आखिर किसने बनाया इसका रूप.

जो बहती है ये कल-कल करती नदिया,
लगी होंगी इन्हे बनने में कितनी सदिया.
बने हैं जो उचे-उचे से पहाड़,
कौन है जिसने दिया इन्हे आकार.

दुनिया में है जो इतना पानी,
क्या है इसके प्रारंभ के निशानी.
फूल जो देते है मनमोहक सुगंध,
आखिर कैसे हुए ये उत्पन्न.

कभी होता है दिन कभी होती है रात,
क्यों होती है आखिर बरसात.
हम जो हैं सब मानव,
क्यों बन जाते है एक दिन शव.

क्या है इनका कोई उत्तर,
जो दे जानकारी हमे बेहतर.
ईश्वर ने बनाया है जो संसार,
क्या किसी को पता है इसका सार.

उजाले से पहले...

आज जरुरत है जिसकी,
कहा वो रोशनी मिलेगी.
अंधकार के सागर को चीर दे जो,
जाने कहा वो किरण मिलेगी.

खो गया आज ये देश,
बुराई के गहरे गर्त में.
भूल गया वो स्वर्णिम अतीत,
जो था इसकी महानता का प्रतिक.

कौन है जिम्मेदार कौन है गद्दार,
आखिर कौन है इसका कसूरवार.
कोई है गरीब है कोए अमीर,
आखिर किसने लिखी ये तक़दीर.

तुम आखिर कब जागोगे,
इस दाग को क्या तुम धो पाओगे?
इतने कमज़ोर हो क्या तुम,
जो हमशा केवल रोते रहोगे.

ज़रा निकलो आरामगाहों से अपने,
देखो औरों को आरामगाहों में उनके.
तुम क्या करोगे उनके वास्ते,
क्या बनावोगे उनकी तरक्की के रास्ते.

तुम नहीं अब हम जागेंगे,
एक नयी आशा की किरण लायेंगे.
दिन पुरे हुए अब तुम्हारे,
हम एक ए़सी महान सोच लायेंगे.

बीती याद..

अदभुत, अविरल सा वो गुजरा पल,
सुंदर झील में जैसे खिला हो कमल.
अमरत्व को प्राप्त वो खोयी याद,
बंद की पलके सजीव हो गए कुछ बीते ख्वाब.

दूर कही मानो है एक जहान,
जहा पर है गुज़रे पलो के निशान.
ना चाहकर भी मस्तिष्क तरंगे पहुच जाती वहा,
अपने अतीत को धूमिल करना किसी के बस में कहा.

कभी सुगन्धित फूलो के बागवान थे जहा,
आज मरुभूमि का मरुस्थल है वहा.
कभी गुजते थे प्रेम के गीतों के राग जहा,
आज पवन तरसती सुनने को एक आवाज़ वहा.

सदिया कितनी आई, कितनी और आयेंगी,
बस केवल यादे और यादे रह जाएँगी.
आज का परिद्श्य, बस केवल आज का है,
कल होगा क्या, प्रश्न ये राज़ का है.

अदभुत, अविरल सा वो गुजारा पल,
सुंदर झील में जैसे खिला हो कमल.
अमरत्व को प्राप्त वो खोयी याद,
बंद की पलके सजीव हो गए कुछ बीते ख्वाब.

उसकी दी निशानी..

ह्रदय संवेदनावो को व्यक्त करना कठिन,
मस्तिष्क भावनावों की अभिव्यक्ति नामुंकिन.
व्यथा और विरहा के वो दर्दभरे पलछिन,
कैसे करे कलम बया बीते लम्हों के वो रातदिन.
समय के कालरेखा का दायरा बढा,
बैचेनी का नागवार अहसास घटा.
कुछ नए लोग मिले जरा सा ध्यान बटा,
पर नहीं स्मृतियों का वो सेज मिटा.
नए-नए चेहरों का दीदार होता है,
हर कोई कहानी का तलबगार होता है.
जूनून की हद तक कोई प्यार करे,
दोस्त ऐसा तो केवल एक बार होता है.
जाते-जाते जरुर मुझे वो रुला गया,
पर बहुत कुछ मुझे वो सिखा गया.
मै कर सकू व्यक्त जिन शब्दों को लेखनी से,
उन अहसासों की तिजोरी वो मुझे थमा गया.

बता गयी मुझे..

महफिलों में अदायगी के लिये,
वो छोर गया तन्हा मुझे.
बहारों के आने से पहले मुरझा जाये फूल,
वो इस कदर गया तड़पा मुझे.
मेरे स्वरों को अपनी आवाज़ देकर,
उम्र भर के लिये मौन कर गया मुझे.
रूह को मेरे अपने रंग से सवार,
वो बेरंग कर छोड़ गया मुझे.
मन में आशा के दीप जला,
निराशाओ की सजा दे गया मुझे.
अपनी किरण से जगमग कर जिस्म को,
जलता हुवा कोई छोड़ गया मुझे.
सपनों की सुनहरी दास्तान सुना,
नीदे चुरा, तोड़ गया मुझे.
दिल को देकर अहसास प्यार का,
होती है बेवफाई क्या, बता गया मुझे.

अब तो जागो...

मुझे कुछ कहना है.... मेरी भी एक कविता है,
पर मुझे सुनता नहीं कोई... बस यही मेरी दुविधा है.
लिखता हू मै हिंदी, हिंदी मेरी मात्रभाषा है,
सौ में से एक मिले जो सुने, बस यही मेरी आशा है.

कोई न सुने हिंदी कविता, पश्चिम से आया सन्देश है,
अंग्रेजी सीखे हम सभी, हमारी सरकार का आदेश है.
भूल जाओ परम्पराए, भूल जाओ इतिहास को,
बदल डालो सभ्यता, बदल डालो विश्वास को.

हिंदी नहीं सीखनी, हमे अंग्रेजी चाहिए,
कविता में क्या रखा है, अंग्रेजी में गाईये.
शिक्षा निति देश की, अंग्रेजी का बोलबाला,
कहा है वो राजनेता, जो कहते खुद को हिंदी का रखवाला.

बदल डाली युवापीढ़ी, पश्चिम के रंग में सराबोर,
कोई नहीं रह गया हिंदी प्रेमी, जो संभाले बागडोर.
चाहे हम नकार ले, चाहे हम अस्वीकार करे,
सच तो सच है, चाहे लाख इन्कार करे.

हिंदी से होता कारोबार, हिंदी से मिला रोजगार,
हिंदी का कर व्यापार, वो बन गए जागीरदार.
कला में हिंदी का प्रयोग, अभिनय में हिंदी का सहयोग,
पर करते अंग्रेजी उपयोग,रूबरू होते जनता से जब कभी वो लोग.

सियासी लोगों की संसद में गूंजती वो आवाज़,
जिसमे होता है सिर्फ अंग्रेजी राग.
हिंदी केवल वोटों तक ही उपयोग,
उसके बाद पसंद नहीं इसका प्रयोग.

अचेतन को तोड़ो, अब जागो यारों तुम,
नहीं तो कर बैठेगो कल अपनी हस्ती गुम.
हमारी विरासत हार के कगार के नजदीक पर खड़ी,
और तुम केवल सोचते कभी तो बदलेगी घड़ी.

मुझे कुछ कहना है.... मेरी भी एक कविता है,
पर मुझे सुनता नहीं कोई... बस यही मेरी दुविधा है.
लिखता हू मै हिंदी, हिंदी मेरी मात्रभाषा है,
सौ में से एक मिले जो सुने, बस यही मेरी आशा है.

छाया आपका जादू..

आपकी मुस्कान का ये कुछ जादू सा छाया है,
हर जर्रे-जर्रे ने ना पूछो क्या-क्या पाया है.
आपके पावन कदमों की जो ये आहट है,
हर परिंदा मांग रहा बहारो की दुआ, आपकी ही चाहत है.
भवरे को प्रेम की लगन, वो हो गया लौ पर फ़ना,
ईश्क है एक ऐसा बंधन, जो जग की हर रीत तोड़ बना.
दिल जो डूबा है इस खुशी के सागर में, उसे फिर है क्या कहना,
उसे मिल गया उसका खुदा, अब और इबादत से उसे क्या लेना.
प्यासी धरा को लम्बे अरसे बाद स्वाद मिला बारिश का,
बरसो की तमन्ना को दीदार मिला उसकी ख्वाहिश का.
कबके था जो बेघर पूरा हुवा सपना उसकी रिहाइश का,
ख़ुशी है उसे खत्म हुवा खेल उसके दर्द की नुमाइश का.
आज एक ख्वाब ने पा ली आखिर उसकी हकीकत,
एक भटकती सी रूह को जैसे मिल गयी अब फुरसत.
सदियों से जमा खुशियों के खजाने ने दी जैसे अपनी दस्तक,
शायद अब ह्रदय का मिलन हो आत्मा से, हो जाये बरकत.

उस ख़ुशी का पता...

खुशियों के श्रोत का उदगम बता दो,
जीवन में आनंद का संगम करा दो.
देह के आत्मा को तृप्त कर दे जो,
उस मूल्यवान वस्तु से मिलन करा दो.

तलाश में जिसके संतो के भक्ति लीन,
दार्शनिको के विचार जिस आस्था में विलीन.
कृष्ण राधा के प्रेम संबंधो का यकीन,
उनके बीच का वो अमर बंधन हसीन.

अरस्तु के चमत्कारिक ज्ञान का भंडार,
आइन्स्टीन के काया पलट खोजो का अम्बार.
मायकल एंजलो की प्रतिभाशाली कला,
महात्मा बुद्ध को जिस शक्ति से ज्ञान मिला.

क्रिस्त्लर की मधुर वो वायलिन की तान,
कबीर के गूढ़ रहस्यवादी दोहो की शान.
सेक्सपीअर की जग प्रसिद्ध कविताये,
वो प्रेरणा जिससे लिखी महान रचनाये.

खुशियों के श्रोत का उदगम बता दो,
जीवन में आनंद का संगम करा दो.
देह के आत्मा को तृप्त कर दे जो,
उस मूल्यवान वस्तु से मिलन करा दो.