Friday, October 9, 2009

बेवफाई का राज़..


एक दिन रूठकर उसने कहा था मुझे,
जब झरते आंसुओ की धार में देखा था उसे.
कुछ नाराज़गी के भावों का भारी बोझ था,
उन दिनों उसके दिल में संदेहों का साया हर रोज़ था.

मिला था मुझे दिल में कई संजीदा सवाल थे,
महसूस कर रहा था मुझे बेवफा, कुछ ए़से उसके हाल थे.
मन में जाने क्यों रुखसत के ख्याल थे,
उसके जिस्म के अंग-अंग ना जाने किस पीड़ा से बेहाल थे.

मेरे करीब आ कर भी बहुत दूर था हो गया,
अपने दूर जाने की बातों से उसने था मुझे दर्द से भिगो दिया.
मेरी ना सुनी एक भी उसने कदमो को खिचता गया,
मेरे प्यार के गुलशन को, मेरे ही खून से सींचता गया.

छोड़ गया मुझे सुनसान बनाकर खंडहर,
पुकारता रहा रो-रो कर उसे मेरा उजड़ा मंजर.
रह गयी मेरे ह्रदय की जमीन बंजर की बंज़र,
ना जाने क्यों भोंका उसने मेरे बेकसूर दिल पर मौत का खंजर.

एक दिन रूठकर उसने कहा था मुझे,
जब झरते आंसुओ की धार में देखा था उसे.
कुछ नाराज़गी के भावों का भारी बोझ था,
उन दिनों उसके दिल में संदेहों का साया हर रोज़ था.

9 comments:

  1. छोड़ गया मुझे सुनसान बनाकर खंडहर,
    पुकारता रहा रो-रो कर उसे मेरा उजड़ा मंजर.
    रह गयी मेरे ह्रदय की जमीन बंजर की बंज़र,
    ना जाने क्यों भोंका उसने मेरे बेकसूर दिल पर मौत का खंजर.
    sach dear tumhari is kavita mai vo dard hai jo ankho mai nami la deta hai.....so nice & speechless realy...

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  2. lucky really very sweet and heart touching.. i like dis poem.. i read it many time... very nice keep it up dear friend..

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  3. very gud poem yar.. bahut khub bahut badiya..

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  5. lovely
    dil ka dard dil me hi chupa liya..........
    unki bewafai me humne khud ko hi mita liya...........
    i like it

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