Thursday, December 31, 2009

जब तुमको अपनी आँख खोलनी होगी



एक और वर्ष दहलीज़ पर,
आगमन को खड़ा है.
वतन फिर पश्चिम के रंग में,
अब सजने लगा है.
महफ़िलों के किस्से,
कल अखबारों में छाएंगे.
पर कुछ लोग,
ये रात और रातों से बिताएँगे.
उम्मीद का नया दिया,
यूँ तो मैंने जला लिया.
पर मैंने अपना ये दिल,
आज जाने फिर क्यों दुखा लिया.
एक सच्चाई के तूफान ने,
इसको आज फिर हिला दिया.
एक मजाक उड़ा,
जो कभी यहाँ कोई स्वाभिमानी बना.
हर किसी ने,
झूठ और बेईमानी को जाने पहले क्यों चुना.
मैंने आज तक,
किसी के मुहँ से कभी नहीं सुना,
जाने कितने वर्षों से,
यहाँ सत्य का सूरज नहीं उगा.
उपलब्धियाँ बहुत हैं,
गिनू तो मैं शायद थक जाऊं.
बहुत पक्षपात और बेईमानी के किस्से हैं,
तुम बताओ कैसे सुनाऊं?
जानते हो तुम अर्थव्यस्था शिखर छू रही,
तो और क्या बताऊँ.
क्यों गरीबों का चर्चा कर,
मै तुमको रुलाऊं.
जश्न का दिन है,
तो खुशहाली की बात करनी होगी.
हर सच को पीछे कर,
झूठी गाथा गढ़नी होगी.
पर जो रोएगी आज,
वो हमारी ये जन्मभूमि होगी.
कोई तो दिन आएगा वो,
जब तुमको अपनी आँख खोलनी होगी.

Monday, December 28, 2009

आज स्वाभिमान को जैसे जंग लगा


आज स्वाभिमान को जैसे जंग लगा,
ईमानदार अभिलाषा पर व्यंग बना.
मिट्टी में बेईमानी का काला रंग मिला,
नौनिहाल का चेहरा नफरतों के संग खिला.

सत्य की राह का कोना तंग और तंग हुआ,
आमजन का देशप्रेम से आज मोहभंग हुआ.
सत्ता की ताकत का लाचारों पर दंभ दिखा,
जिधर दृष्टि फेरों शिकवों का लाल रंग दिखा.

आलिशान भवनों में महफिलों का सेज सजा,
किसी की रातों को खुले आसमान का दहेज़ मिला.
उसके मुखपटल पर क्या कभी तेज खिला,
बचपन से जिसे दर-दर की ठोकरों का देश मिला.

इस बेहाल वतन की महानता का गीत सुना,
कई वीरों की वीरता का यशस्वी संगीत सुना.
वतन की चाह में उनका हर पल था व्यतीत हुआ,
बलिदान उनकी प्रेमिका, शहादत उनका मीत हुआ.

एक-एक पग से आज याद उनका जूनून हुआ,
हम सब में कही ना कही उनका अंश यकीन हुआ.
मेरे अंतरमन को अनजाना सा सुकून मिला,
पर समझ ना आया कहा से बेईमानी का ये खून मिला.

Monday, November 30, 2009

पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है


उस रिक्शे वाले की रगे किसी दर्द से दुखती हैं,
कहता है उसकी तो आँख आँसुओ से सजती हैं.
बोलता मेरे घर में नहीं कभी दिवाली मनती है,
तो फिर क्यों यहाँ खुशहाली की खबरे छपती हैं?

किसी की आत्मा खुद की लाचारी में जलती है,
किसी की राते भूखे और खाली पेट ढलती हैं.
किसी नन्हे हाथ में मुझे एक कटोरी दिखती है,
कही रात भर पैसे वालो की महफ़िल सजती है.

यहाँ हर एक दिल में एक चिंगारी सुलगती है,
पर क्यों नहीं कही से कोई आवाज़ निकलती है?
सच्चाई सबको पता असलियत साफ़ झलकती है,
यहाँ हर राह पर अन्याय की तस्वीर चमकती है.

राज़नेताओ की यहाँ हर रोज़ जबान बदलती है,
उनकी चाह तो बस सत्ता के लिए मचलती है.
उनकी तो आये दिन यहाँ किस्मत सवरती है,
पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है.

Wednesday, November 18, 2009

कैसी ये नाइंसाफी है..



जीवन वृक्ष की डाल पवन झोकों से प्रतिरक्षा कर रही,
दहेली पर आगमन को तैयार हर पल की सुरक्षा को लड़ रही.
उम्मीदों की कड़ी कांच के टुकडों की भांति जमी पर बिखर गयी,
मनुष्य के राह की मंजिल बस धन के पड़ाव पर आकर ठहर गयी.


चंद कागज के टुकडों की लालसा ने नैतिकता को घुन लगा दिया,
हर किसी को भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल करा लिया.
मानवता को आज लोगों ने फरेब के चुल्लू भर पानी में डुबो दिया,
शरीर के एक-एक कतरे को बेईमानी के कालिख जल से भिगो दिया.


योग्यता कर्म-स्थल पर कसौटी का द्वितीयक पैमाना बना,
हर कोई गरीब इस नाइंसाफी का आसान निशाना बना.
मजदूर आदमी ने अपने खून पसीने से नव भारत का सृजन किया,
वातानुकूलित कक्ष में बैठे किसी अधिकारी ने श्रेय लिया, खुद की महिमा का वर्णन किया.


बुराई का दानव सत्ता के गलियारों की शान बना, हर ओर झूठ का आवरण छा गया,
देश झूठे सपनों व बयानों से आभासी रोशनी में जगमगा गया.
सड़कों में सोने वाले वही पैदा हुए और वही बेचारे भूख से एक दिन मर गए,
अजीब सी बात है सत्ता के लोग ये सब भूल, एक रात बिताने किसी दलित के घर गए.

Monday, November 9, 2009

हर कोई बेईमान दिखता है..



हर कोई मुझे बेईमान लगता है, हर कोई मुझे परेशान दिखता है,
हर कोई बेच रहा अपना इमान, नज़ारा ये खुले आम दिखता है.
किसी भी मोड़ पर जाऊ कही, तो हर शख्स हैरान दिखता है,
बदल गयी शायद इंसानियत, हर किसी के दिल मै एक शैतान दिखता है.

राख भी नहीं मिलती एक कत्लेआम लगता है, ईमानदारी का हो गया काम तमाम लगता है,
दूर-दूर तक सत्य का निशान नहीं, इसकी भूमि का मर गया किसान लगता है.
अहिंसा की बाते किताबों की पंक्तिया बनी, इसके विचारों का संग्रहालय सुनसान लगता है,
प्रेम भाईचारे के राह पर काँटो की झाड़िया उगी, अ़ब कुछ ही दिनों का ये मेहमान लगता है.

झूठे और दगाबाज़ पहुंचे है शासन पर, सच्चे इन्सान को जो एक सपना बेईमान लगता है,
आम जानता में है एकता की कमी, इनका हाल मुझे लहूलुहान लगता है.
गरीब को ना शिक्षा ना ही अवसर, देश का ये सबसे बड़ा अभिशाप दिखता है,
पर हम बढ़ रहे निरंतर प्रगति के ओर, हमारी सरकार का ये बयान मुझे धोखेबाज़ लगता है.

हर कोई मुझे बेईमान लगता है, हर कोई मुझे परेशान दिखता है,
हर कोई बेच रहा अपना इमान, नज़ारा ये खुले आम दिखता है.
किसी भी मोड़ पर जाऊ कही, तो हर शख्स हैरान दिखता है,
बदल गयी शायद इंसानियत, हर किसी के दिल मै एक शैतान दिखता है.

Wednesday, October 14, 2009

मेरे वतन की अमिट है शान..


मेरे देश का एक-एक कण महान, मेरे वतन का अमिट है निशान,
जिसकी हर लहू बूद में वीरों की कुर्बानी, कुछ ऐसी बुलंद है इसकी शान.
कई तूफान बरसे पूरी लगा दी जान, पर नहीं मिटा कभी इसका अमर जहान,
कोशिश की जब भी करने की इसको वीरान, अनेकों वीर हुए देशभक्ति पथ पर कुर्बान.

जिसका हर जर्रा-जर्रा एक वरदान, जिसके उदगम स्थल पर पुराणों का अनमोल ज्ञान,
जिस धरा का स्थिर रहा सदा इमान, जिसके खिले-खिले फूलों पर सुंगंध दे रहे कुरान.
वीरों ने सदा दी इसको नयी पहचान, जब जरुरत पड़ी शहीद हुआ हर एक नौजवान,
जरुर पुरे होंगे इसके मंजिल फतेह के अरमान, रक्त में जिसके कई अमर देशभक्तों की जान.

अनेक महापुरुषो का हम पर है अहसान, कल्पना थी जिनकी बने ये देश महान,
जिन्होंने लुटाया अपने एक-एक पल का मान, जरुरत पड़ी तो कर दी अपनी हस्ती बलिदान.
उनकी आत्मा आज कह रही जरा दो तो ध्यान, क्या पुरे करोगे हमारे सपने जो बैठे हो तुम सुनसान?
क्या नहीं तुम्हारे लहू में हमारी पहचान, क्यों बैठे हो तुम सब ओढे चादर अज्ञान?

भूल गए शहीदों की शहादत व बलिदान, जो भूल अपनों को हुए शहीद बचायी हमारी जान,
भूल गए आजाद को? याद नहीं भगत सिंह महान? भूल गए तुम इंकलाब-जिंदाबाद की जबान.
अपने सपने दे हमें हो गए कुर्बान, सौपी अपने विचारों की विरासत, मिटा दी जिन्होंने अपनी शान,
आज उनका कतरा-कतरा मांग रहा अपने निशान, उठो तुम और कर दो हर बुराई का कत्लेआम.

Saturday, October 10, 2009

विफलता से ही सफलता..


प्रत्येक विचार को ह्रदय तराजू से तोल,
एक-एक पल का अनमोल है मोल.
मानव! मस्तिष्क के बंद कपाट तो खोल,
फिर सुख सरिता के निर्मल नीर में डोल.

मह्त्वाकान्क्षा सबकी प्राप्त हो लक्ष्य की सफलता,
जान लो प्रथम पग है इसका हतोत्साहित विफलता.
पार किया इसे मन में रही आश, पराजित की दुर्बलता,
स्पर्श करता है वही लक्ष्य के शिखर की चमत्कृत उज्जवलता.

हर पग में निराशाओ के घनघोर मेघ छाएंगे,
कदम-कदम पर काँटों से सजे पौधे घाव दे जायँगे.
तेरी हर राह पर तूफानों के कारवा महफ़िल सजायेंगे,
अनेक बाधाये अपने कठोर स्वरूप से परिचित तुझे कराएँगे.

सफल रहा वही जिसने हर रुकावट से हौसला लिया,
जिसने संघर्ष के समय खुद का आत्म साक्षात्कार किया.
ये मै नहीं कहता, इतिहास ने है सदैव सिद्ध किया,
जीता आखिर में वही, जिसने विफलता से सफलता का सृजन किया.