Thursday, October 8, 2009

अब तो जागो...

मुझे कुछ कहना है.... मेरी भी एक कविता है,
पर मुझे सुनता नहीं कोई... बस यही मेरी दुविधा है.
लिखता हू मै हिंदी, हिंदी मेरी मात्रभाषा है,
सौ में से एक मिले जो सुने, बस यही मेरी आशा है.

कोई न सुने हिंदी कविता, पश्चिम से आया सन्देश है,
अंग्रेजी सीखे हम सभी, हमारी सरकार का आदेश है.
भूल जाओ परम्पराए, भूल जाओ इतिहास को,
बदल डालो सभ्यता, बदल डालो विश्वास को.

हिंदी नहीं सीखनी, हमे अंग्रेजी चाहिए,
कविता में क्या रखा है, अंग्रेजी में गाईये.
शिक्षा निति देश की, अंग्रेजी का बोलबाला,
कहा है वो राजनेता, जो कहते खुद को हिंदी का रखवाला.

बदल डाली युवापीढ़ी, पश्चिम के रंग में सराबोर,
कोई नहीं रह गया हिंदी प्रेमी, जो संभाले बागडोर.
चाहे हम नकार ले, चाहे हम अस्वीकार करे,
सच तो सच है, चाहे लाख इन्कार करे.

हिंदी से होता कारोबार, हिंदी से मिला रोजगार,
हिंदी का कर व्यापार, वो बन गए जागीरदार.
कला में हिंदी का प्रयोग, अभिनय में हिंदी का सहयोग,
पर करते अंग्रेजी उपयोग,रूबरू होते जनता से जब कभी वो लोग.

सियासी लोगों की संसद में गूंजती वो आवाज़,
जिसमे होता है सिर्फ अंग्रेजी राग.
हिंदी केवल वोटों तक ही उपयोग,
उसके बाद पसंद नहीं इसका प्रयोग.

अचेतन को तोड़ो, अब जागो यारों तुम,
नहीं तो कर बैठेगो कल अपनी हस्ती गुम.
हमारी विरासत हार के कगार के नजदीक पर खड़ी,
और तुम केवल सोचते कभी तो बदलेगी घड़ी.

मुझे कुछ कहना है.... मेरी भी एक कविता है,
पर मुझे सुनता नहीं कोई... बस यही मेरी दुविधा है.
लिखता हू मै हिंदी, हिंदी मेरी मात्रभाषा है,
सौ में से एक मिले जो सुने, बस यही मेरी आशा है.

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