Monday, November 30, 2009

पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है


उस रिक्शे वाले की रगे किसी दर्द से दुखती हैं,
कहता है उसकी तो आँख आँसुओ से सजती हैं.
बोलता मेरे घर में नहीं कभी दिवाली मनती है,
तो फिर क्यों यहाँ खुशहाली की खबरे छपती हैं?

किसी की आत्मा खुद की लाचारी में जलती है,
किसी की राते भूखे और खाली पेट ढलती हैं.
किसी नन्हे हाथ में मुझे एक कटोरी दिखती है,
कही रात भर पैसे वालो की महफ़िल सजती है.

यहाँ हर एक दिल में एक चिंगारी सुलगती है,
पर क्यों नहीं कही से कोई आवाज़ निकलती है?
सच्चाई सबको पता असलियत साफ़ झलकती है,
यहाँ हर राह पर अन्याय की तस्वीर चमकती है.

राज़नेताओ की यहाँ हर रोज़ जबान बदलती है,
उनकी चाह तो बस सत्ता के लिए मचलती है.
उनकी तो आये दिन यहाँ किस्मत सवरती है,
पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है.

Wednesday, November 18, 2009

कैसी ये नाइंसाफी है..



जीवन वृक्ष की डाल पवन झोकों से प्रतिरक्षा कर रही,
दहेली पर आगमन को तैयार हर पल की सुरक्षा को लड़ रही.
उम्मीदों की कड़ी कांच के टुकडों की भांति जमी पर बिखर गयी,
मनुष्य के राह की मंजिल बस धन के पड़ाव पर आकर ठहर गयी.


चंद कागज के टुकडों की लालसा ने नैतिकता को घुन लगा दिया,
हर किसी को भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल करा लिया.
मानवता को आज लोगों ने फरेब के चुल्लू भर पानी में डुबो दिया,
शरीर के एक-एक कतरे को बेईमानी के कालिख जल से भिगो दिया.


योग्यता कर्म-स्थल पर कसौटी का द्वितीयक पैमाना बना,
हर कोई गरीब इस नाइंसाफी का आसान निशाना बना.
मजदूर आदमी ने अपने खून पसीने से नव भारत का सृजन किया,
वातानुकूलित कक्ष में बैठे किसी अधिकारी ने श्रेय लिया, खुद की महिमा का वर्णन किया.


बुराई का दानव सत्ता के गलियारों की शान बना, हर ओर झूठ का आवरण छा गया,
देश झूठे सपनों व बयानों से आभासी रोशनी में जगमगा गया.
सड़कों में सोने वाले वही पैदा हुए और वही बेचारे भूख से एक दिन मर गए,
अजीब सी बात है सत्ता के लोग ये सब भूल, एक रात बिताने किसी दलित के घर गए.

Monday, November 9, 2009

हर कोई बेईमान दिखता है..



हर कोई मुझे बेईमान लगता है, हर कोई मुझे परेशान दिखता है,
हर कोई बेच रहा अपना इमान, नज़ारा ये खुले आम दिखता है.
किसी भी मोड़ पर जाऊ कही, तो हर शख्स हैरान दिखता है,
बदल गयी शायद इंसानियत, हर किसी के दिल मै एक शैतान दिखता है.

राख भी नहीं मिलती एक कत्लेआम लगता है, ईमानदारी का हो गया काम तमाम लगता है,
दूर-दूर तक सत्य का निशान नहीं, इसकी भूमि का मर गया किसान लगता है.
अहिंसा की बाते किताबों की पंक्तिया बनी, इसके विचारों का संग्रहालय सुनसान लगता है,
प्रेम भाईचारे के राह पर काँटो की झाड़िया उगी, अ़ब कुछ ही दिनों का ये मेहमान लगता है.

झूठे और दगाबाज़ पहुंचे है शासन पर, सच्चे इन्सान को जो एक सपना बेईमान लगता है,
आम जानता में है एकता की कमी, इनका हाल मुझे लहूलुहान लगता है.
गरीब को ना शिक्षा ना ही अवसर, देश का ये सबसे बड़ा अभिशाप दिखता है,
पर हम बढ़ रहे निरंतर प्रगति के ओर, हमारी सरकार का ये बयान मुझे धोखेबाज़ लगता है.

हर कोई मुझे बेईमान लगता है, हर कोई मुझे परेशान दिखता है,
हर कोई बेच रहा अपना इमान, नज़ारा ये खुले आम दिखता है.
किसी भी मोड़ पर जाऊ कही, तो हर शख्स हैरान दिखता है,
बदल गयी शायद इंसानियत, हर किसी के दिल मै एक शैतान दिखता है.