Friday, October 9, 2009

मंजिल है नजदीक..


तेज़ धूप में चलता वो मह्त्वाकांशी शख्स,
आत्मविश्वास बह रहा बनकर उसकी नसों में रक्त.
कदमो के निशान कहते, वक्त कितना भी ढाए कहर,
ढह नहीं सकता कभी, उसके उम्मीदों का बना शहर.

जीवन के हर दुःख भरे मोड़ को हराता जा रहा,
लहू में विजय के सुख भरे अहसास को भरता जा रहा.
वो कल एक हारा हुआ निराश मानव ही तो था,
जो आज हर बाधा को तोड़ कर पार करते जा रहा.

सिखाया जिसने वो है उसकी विनाशकारी कमजोरिया,
बनी जो उसके उत्साह की ललक, थी वो उसकी ही मजबूरिया.
बढता जा रहा, कम होता फासला नजदीक है लक्ष्य,
जो कभी थी उसकी हताशा, आज वही उसकी जीत का पक्ष.

हालत चाहे हो कितने भी कठिन और विपरीत,
परिवर्तित होता है समय, यही जग की रीत.
हौसला न तोड़ कभी मानव, गाता जा द्रढ़ता के गीत,
दूर नहीं वो अनसुनी धुन, सफलता का वो मधुर संगीत.

4 comments:

  1. greatt.... bahut asahwo se labrej kawita... bada aacha laga pad kr..

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  2. very nice and bahut hi achi bahwnaye wykat ki hai aatmvishwas ki..gud..

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  3. gud ... its a gud and fantastic poem.. every word are gives real felling of poem..

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