Friday, October 9, 2009

छू लो मुझे..


आज तुम छू लो बेजान हाथों को,
कर दो जिंदा दे कर अपना स्पर्श इन्हें.
देख लो पल भर के दृष्टि से नयनों को,
एक नयी जीवन रोशनी दे दो इन्हें.

तड़पती आत्मा को कर दो स्थिर,
जला दो दिया ये है उजड़ा मंदिर.
जीवित होकर भी मृत सी है देह,
व्यतीत हुए बरसों, भूल गया मानवीय स्नेह.

बो कर बीज जैसे बिछड़ जाये माली,
किसी विनाशकारी तूफान से टूट जाये डाली.
पक्षी भटक जाये जैसे अपनी राह,
बदली छायी रात में एक चकोर की चाह.

जैसे सूरज की गर्म तपिश, लुप्त बरखा,
गाव में हो रहा मेला बिन चरखा.
जैसे राही कोई चल रहा, नीचे सुलगती रेत,
भक्ति में लीन संत की इच्छा, ईश्वर भेट.

आज तुम छू लो बेजान हाथों को,
कर दो जिंदा दे कर अपना स्पर्श इन्हें.
देख लो पल भर के दृष्टि से नयनों को,
एक नयी जीवन रोशनी दे दो इन्हें.

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