उस रिक्शे वाले की रगे किसी दर्द से दुखती हैं,
कहता है उसकी तो आँख आँसुओ से सजती हैं.
बोलता मेरे घर में नहीं कभी दिवाली मनती है,
तो फिर क्यों यहाँ खुशहाली की खबरे छपती हैं?
किसी की आत्मा खुद की लाचारी में जलती है,
किसी की राते भूखे और खाली पेट ढलती हैं.
किसी नन्हे हाथ में मुझे एक कटोरी दिखती है,
कही रात भर पैसे वालो की महफ़िल सजती है.
यहाँ हर एक दिल में एक चिंगारी सुलगती है,
पर क्यों नहीं कही से कोई आवाज़ निकलती है?
सच्चाई सबको पता असलियत साफ़ झलकती है,
यहाँ हर राह पर अन्याय की तस्वीर चमकती है.
राज़नेताओ की यहाँ हर रोज़ जबान बदलती है,
उनकी चाह तो बस सत्ता के लिए मचलती है.
उनकी तो आये दिन यहाँ किस्मत सवरती है,
पर कहा ये बात किसी के दिमाग में उतरती है.
तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो
13 years ago
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