Friday, October 9, 2009

तू ही मेरी आशा..


भोर के सूरज का ओजस्वी पवित्र प्रकाश,
शीतल पवन छूकर देती नयी जोशीली उमंग आज.
आशाओ के दीये उज्जवल लौ से जलते, खुला है आकाश,
मेरे ह्रदय में एक नयी कामना, मेरे मन में एक नयी तरंग आज.

लहू को हौसले से आवेशित करती नवप्रातः की सुगंध,
दूर होकर अपने वजूद को नेस्तनाबूद करती निराशा की धुंध.
प्रकृति के रहस्यवादी दृश्यों से आशान्वित मेरी आत्मा,
कह रही शीघ्र ही होगा निराशावादी रात्रि का खात्मा.

आशावाद की किरण आज नभ को चूम रही है,
मेरी नज़रे कायापलट होने वाले दृश्यों से झूम रही है.
अंतिम सांसे गिन रहा वो तूफान, जिसने मेरी खुशहाल किश्ती को डुबोया,
था वही तो जिसने मेरे अश्रुवो से मेरी पलकों को भिगोया.

मन के किसी कोने में विराजमान था एक रोशनी का साया,
महिमा ये उसी की है, उसने सदा मेरा अस्तित्व बचाया.
नव स्फूर्ति का आनन्द, नयी सांसे, ना ही कोई मोहमाया,
आज वास्तविक ख़ुशी का स्वादन कर रही मेरी काया.

जब कभी मेरी भावनावो के जवार ने मेरी आशओं को हिलाया,
धन्यवाद तुझे जन्नत की रूह, तुने मुझे सदैव हँसी से मिलाया.

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