आज जो मै बहा रही हू आंसू,
कल तुम भी अवश्य रोवोगे.
मैंने दिया तुम्हे अपना सब कुछ,
कल तुम भी मेरे लिए तरसोगे.
जननी सा प्यार लुटाया मैंने तुम पर अपना हर वक़्त,
दी नदिया, दिए पहाड़ और दिए निर्मल झरने सर्वत्र.
अपने प्यार के गो़द पर खिलाया तुझे,
पर आज तुमने आखिर क्यों रुलाया मुझे?
मैंने दी तुम्हे स्वच्छ हवा, दिए तुम्हे सुंदर सपने,
पर इनको ही अपना शिकार आखिर क्यों बनाया तुमने?
मै प्रकृति हू, मै कुदरत हू,
मै जननी हू, मै जीवनदायनी हू.
मैंने दिया तुम्हे सदैव अपने श्रृंगार का दुलार,
पर वाह इंसान, तुमने कितना ज्यादा किया मुझे प्यार.
तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो
13 years ago
bahut aachi kawit hai perkriti ki.. very nice..
ReplyDeletereally fantastic... gud..
ReplyDeletesays real pain of nature.. gud one..
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