Thursday, October 8, 2009

बीती याद..

अदभुत, अविरल सा वो गुजरा पल,
सुंदर झील में जैसे खिला हो कमल.
अमरत्व को प्राप्त वो खोयी याद,
बंद की पलके सजीव हो गए कुछ बीते ख्वाब.

दूर कही मानो है एक जहान,
जहा पर है गुज़रे पलो के निशान.
ना चाहकर भी मस्तिष्क तरंगे पहुच जाती वहा,
अपने अतीत को धूमिल करना किसी के बस में कहा.

कभी सुगन्धित फूलो के बागवान थे जहा,
आज मरुभूमि का मरुस्थल है वहा.
कभी गुजते थे प्रेम के गीतों के राग जहा,
आज पवन तरसती सुनने को एक आवाज़ वहा.

सदिया कितनी आई, कितनी और आयेंगी,
बस केवल यादे और यादे रह जाएँगी.
आज का परिद्श्य, बस केवल आज का है,
कल होगा क्या, प्रश्न ये राज़ का है.

अदभुत, अविरल सा वो गुजारा पल,
सुंदर झील में जैसे खिला हो कमल.
अमरत्व को प्राप्त वो खोयी याद,
बंद की पलके सजीव हो गए कुछ बीते ख्वाब.

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