अद्भुत लेकिन एक सरस अभिव्क्ति,
निश्चल सी वो एक अमिट स्मृति.
बीते लम्हों के गवाह के निशानिया,
स्मृति पटल पर अंकित वो पुरानी कहानिया.
आँगन के पास वो बरगद का पेड़.
आज भी याद है वो मीठे बेर.
माँ का मुझे वो रूठकर डाटना,
होता जब कभी मेरा बारिश में नाचना.
तितलिया देख कल्पना सागर का मचलना.
करना नाकाम कोशिश, उन्हें पकड़ने भागना.
पक्षियों का घोसला देख उपजता रहस्य,
दादी से पूछना फिर उसका महत्व.
घर के पास का वो पुराना मकान,
जो कभी था हमारे लूका-छुपी का मैदान.
आज नहीं उसके भौतिक अस्तित्व के निशान,
पर मन में कैद है वो कुछ पल नादान.
माँ की रात को वो परियों की कहानी,
याद आज भी जों है मुह जबानी.
माँ के आँचल का मधुर सुरक्षित अहसास,
सब तो है आज, पर वो नहीं मेरे पास.
अद्भुत लेकिन एक सरस अभिव्क्ति,
निश्चल सी वो एक अमिट स्मृति.
बीते लम्हों के गवाह के निशानिया,
स्मृति पटल पर अंकित वो पुरानी कहानिया.
तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो
14 years ago




wow wat a gud poem... really very gud...
ReplyDeletereally heart touching..
ReplyDeletebahut khub kafi suder rachna...
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