इक खामोशी सी घिर आई,
जब उसने खुद कि बेरुखी पायी.
दिल के चैन को हर पल तलाशता वो शख्स,
गुम है किसी कि जुस्तजू में आज हर वक़्त.
उसकी खामोशी का आलम देख,
आज मुझ से रहा नहीं जाता.
इंशा के साथ होता है जो,
क्या है ये, मै जान नहीं पाता.
ये शायद एक तक़दीर का फ़साना है,
जो होना है और वक़्त का अफसाना है.
खामोशी हर वक़्त किसे है पसंद,
ये वो तराना है जो न चाहकर भी गाना है.
तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो
14 years ago




heart touching... keep it up..
ReplyDeletepainful and heart touching..
ReplyDeletebahut hi khub dost.. kya kahu..
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