आज स्वाभिमान को जैसे जंग लगा,
ईमानदार अभिलाषा पर व्यंग बना.
मिट्टी में बेईमानी का काला रंग मिला,
नौनिहाल का चेहरा नफरतों के संग खिला.
सत्य की राह का कोना तंग और तंग हुआ,
आमजन का देशप्रेम से आज मोहभंग हुआ.
सत्ता की ताकत का लाचारों पर दंभ दिखा,
जिधर दृष्टि फेरों शिकवों का लाल रंग दिखा.
आलिशान भवनों में महफिलों का सेज सजा,
किसी की रातों को खुले आसमान का दहेज़ मिला.
उसके मुखपटल पर क्या कभी तेज खिला,
बचपन से जिसे दर-दर की ठोकरों का देश मिला.
इस बेहाल वतन की महानता का गीत सुना,
कई वीरों की वीरता का यशस्वी संगीत सुना.
वतन की चाह में उनका हर पल था व्यतीत हुआ,
बलिदान उनकी प्रेमिका, शहादत उनका मीत हुआ.
एक-एक पग से आज याद उनका जूनून हुआ,
हम सब में कही ना कही उनका अंश यकीन हुआ.
मेरे अंतरमन को अनजाना सा सुकून मिला,
पर समझ ना आया कहा से बेईमानी का ये खून मिला.